कुछ दिनों पहले हम रिश्तेदारी में एक जगह मिलने गये। सबसे मेल-मुलाकात हो गई उनके सुपुत्र जी नादारद थे।पता चला वीडियोगेम खेल रहें हैं । काफी बुलाने के बाद जनाब तशरीफ लाये। हाय,हैल्लो की औपचारिकता पूरी करी और फिर गायब व मशगूल अपने गेम में।
हम भी पहुंचे उत्सुकता पूर्वक देखने की आखिर ऐसा क्या है जो वो गेम से विछोह बर्दाशत नहीं कर पा रहें हैं। पीछे खडे होकर थोडा मुआयना किया तो पता चला कि कोई दो ग्रुप के मार-धाड पर आधारित खेल है। एक लडके को मिलकर तीन-चार लोग पीट रहें हैं। तभी पिटने वाले लडके के ग्रुप के सदस्य आ जाते है सब गुथम-गुथ्था। बस इससे ज्यादा हम उसे नहीं झेल पाये।
लौटते वक्त तक यहीं सोचते रहे कि रोज इसी प्रकार के खेल बच्चे की मानसिकता पर क्या असर करेंगें। बच्चों के कोमल मन पर पडने वाले प्रभाव को सोच कर हम सिहर उठे थे। सप्रयास हमने अपने को इस विचार से दूर रखने की कोशिश करी पर सफल नहीं हो पाये।
कल न्यूज़ की एक हेडलाइन ने ज़रा हमें आश्वस्त किया कि अब ज्यादा दिनों तक इस प्रकार के वीडियो गेम नहीं खेले जा सकेंगें क्योंकि अब वीडियो गेम्स पर भी सेंसरशिप लागू होगी। चलो देर आयद दुरस्त आयद, सेंसरशिप के बाद अत्यधिक खूनखराबे और सेक्स वाले कंप्यूटर गेम्स बच्चों को देखने को नहीं मिलेंगें। सूचना प्रसारण मंत्रालय के अनुसार लम्बे समय से अभिभावक ऐसे गेम्स की खिलाफत कर रहे थे।
मंत्रालय विधेयक के मसौदे पर विचार कर रहा है। विशेष वीडियो गेम के लिये बच्चों की आयु सीमा तय करी जायेगी।साथ ही यदि कोई वीडियोगेम भारतीय स्थितियों के अनुरूप नहीं है तो सेंसर बोर्ड को उसे खारिज़ करने का अधिकार भी होगा। जिस प्रकार डीवीडी कवर पर सेंसर बोर्ड का प्रमाण-पत्र दर्शाना होता है उसी प्रकार की अनिवार्यता वीडियोगेम्स के कवर पर भी होगी। सेंसर बोर्ड अध्यक्षा शर्मिला टैगोर के मुताबिक "प्रस्ताव लागू होने के बाद पालकों को खरीदे जाने वाले वीडियोगेम की पूरी पक्की जानकारी मिल सकेगी।गेम्स अनुचित सामग्री पाये जाने पर उन्हें हटा दिया जायेगा।"
16 comments:
Really interesting one, i liked it most.. keep it up writer. :)
kafi acchi likha hai..
सेन्सर वेंसर फालतू बात है, ब्लू फिल्म्र कौन सी प्रमाणपत्र लिये रहती है?
माता-पिता को ही ध्यान देना होगा. मेरे बेटे को भी ऐसे खेलो का नशा है, जिसे समझदारी से कम कर दिया है अब महिने में मुश्किल से दस-पन्द्रह मिनट खेल पाता है.
वीडियो गेम्स के अलावा भी तरह तरह से हिन्सा परोसी जा रही है। मीडिया उसमेँ अग्रणी है। पता नहीं कैसे यह सब सेंसर किया जायेगा या अंकुश लगेगा इसपर।
आपने सार्थक मुद्दा उठाया।
स्वागतार्ह है यह विधेयक। हाल ही में मध्य प्रदेश की एक खबर थी कि एक स्कूली छात्र ने अपने ही स्कूल के एक दूसरे छात्र को गोली मार दी ऐसा तो पहले अमरीका में ही सुनने में आता था । हो सकता है इन विडियो गेम्स का भी इस मानसिकता में योगदान हो ।
अनुराधा जी
सेंसर से क्या होगा जब हजारों ओनलाईन साईट्स मौजूद है, जिस पर हर तरह के मुफ्त ओनलाईन गेम खेले जा सकते हैं।
मेरे कॉफे में इसी वजह से बच्चों को गेम नहीं खेलने देता मैं।
वाकई स्वागतेय है!!
मुझे लगता है ऐसे वीडियो गेम कहीं बच्चों को आक्रामक बनाने मे मददगार साबित होते हैं।
ऐसे सेंसर स ेकुछ नहीं होगा. मां बाप को देखना चाहिए कि औलाद किस रास्ते पर जा रही है.
छह सात साल पहले की बात है जब हमने बच्चो को पी एस 2 लेकर दी. बच्चों की वीडियो गेम्स को खुद खेल कर देखना ज़रुरी था, जब चीट कोड्स से गेम को आगे बढाने के तोड़ मिलते तो दाँतो तले उंगली दबा लेते थे.
स्कूल मे पढ़ाते हुए कितने ही माता-पिता को यकीन दिलाना पड़ा कि वीडियो गेम्स बच्चो के लिए खतरनाक है क्योकि हम खुद हर गेम की सी डी को खेल कर चैक करते थे फिर बच्चो को इज़ाज़त मिलती थी खेलने की.
ऐसे निर्णय लेने बहुत कठिन होते हैं । सबसे बेहतर तो यह है कि बच्चों का शौक किन्हीं अच्छे खेल खेलने जैसे सच के खेलकूद में लगाया जाए ।
घुघूती बासूती
गनीमत इस स्थिति से हम निकल चुके है।
एक जमाना था जब हमारे बच्चे बहुत ज्यादा विडियो गेम खेलते थे।
पर कानून बनाने से कुछ नही होगा।
बच्चों को थौड़े प्यार मनुहार से समझाया जा सकता है...
आपको नया साल बहुत-बहुत मुबारक हो...:)
मैं आप लोगों की बात से बिलकुल सहमत नहीं हूँ. बच्चों पर रोकटोक से शायद ज्यादा जरूरी है उनसे सही संवाद स्थापित करना. सेंसर बोर्ड क्या क्या रोकेगा??इन्टरनेट और टी वी पर सारी सामग्री उपलब्ध है.बाल अपराध सिर्फ विडियो गेम या फिल्मों के कारण नहीं होते. हिंसक प्रवृत्ति घर के माहौल,पारिवारिक पृष्ठभूमि और संगति के प्रभाव से आती है.
अगर आप लोगों की माने तो उस हिसाब से यू पी, बिहार,मध्यप्रदेश के पिछडे इलाकों में तो बाल अपराध की संख्या शून्य होनी चाहिए, क्योंकि वहाँ तो आपके गिनाए मनोरंजन के साधनों में से एक भी मौजूद नहीं है.
सारा दोष इन्टरनेट,टी वी,विडियो गेम जैसे मानवनिर्मित उत्पादों पर डाल कर अगर माता पिता अपनी लापरवाहियों पर पर्दा डालना चाहते हैं, तो इससे ज्यादा खेदजनक बात क्या होगी.
दूसरी बात,सेंसर के द्वारा खूनखराबा और सेक्स को आप बच्चों तक पहुँचने से रोक नहीं सकते, बेहतर है कि उन्हें उनकी जिम्मेदारियों से अवगत कराएँ.जब बच्चे माता पिता के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने लगेंगे तो फिर वो लाख गेम खेल लें, पर कोई ऐसा कृत्य नहीं करेंगे जो उनके अभिभावक की छवि को ठेस पहुँचाये.
मैं आप लोगों की बात से बिलकुल सहमत नहीं हूँ. बच्चों पर रोकटोक से शायद ज्यादा जरूरी है उनसे सही संवाद स्थापित करना. सेंसर बोर्ड क्या क्या रोकेगा??इन्टरनेट और टी वी पर सारी सामग्री उपलब्ध है.बाल अपराध सिर्फ विडियो गेम या फिल्मों के कारण नहीं होते. हिंसक प्रवृत्ति घर के माहौल,पारिवारिक पृष्ठभूमि और संगति के प्रभाव से आती है.
अगर आप लोगों की माने तो उस हिसाब से यू पी, बिहार,मध्यप्रदेश के पिछडे इलाकों में तो बाल अपराध की संख्या शून्य होनी चाहिए, क्योंकि वहाँ तो आपके गिनाए मनोरंजन के साधनों में से एक भी मौजूद नहीं है.
सारा दोष इन्टरनेट,टी वी,विडियो गेम जैसे मानवनिर्मित उत्पादों पर डाल कर अगर माता पिता अपनी लापरवाहियों पर पर्दा डालना चाहते हैं, तो इससे ज्यादा खेदजनक बात क्या होगी.
दूसरी बात,सेंसर के द्वारा खूनखराबा और सेक्स को आप बच्चों तक पहुँचने से रोक नहीं सकते, बेहतर है कि उन्हें उनकी जिम्मेदारियों से अवगत कराएँ.जब बच्चे माता पिता के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने लगेंगे तो फिर वो लाख गेम खेल लें, पर कोई ऐसा कृत्य नहीं करेंगे जो उनके अभिभावक की छवि को ठेस पहुँचाये.
श्रीमती जोगलेकर जी ने मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में हुए हादसे का उल्लेख किया, उसके बारे में टिपण्णी करना चाहूँगा कि रतलाम जिला मध्यप्रदेश के पिछडे जिलों में से आता है.रीवा,सीधी रतलाम ये ऐसे जिले हैं जहाँ ऐसे कारनामे घटित होते ही रहते हैं, बस दर्ज नहीं होते. इन जिलों में बिजली ही मुश्किल से आती है गेम्स और टी वी की बात तो छोड़ ही दीजिये.
दूसरी घटना जो भारत में हुई थी वो थी गुडगाँव की घटना.जिसमे ९ वी के छात्र ने अपने सहपाठी को अपने पिता की रिवोल्वर से गोली मारी थी. उस छात्र को बाल सुधार गृह भेज दिया गया है और उसके पिता पर लापरवाही का मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया है.
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