झंडारोहण के बाद कुछ देर पहले ही फैक्ट्री से लौटे हैं।दिल कुछ भारी सा है। आज गौर किया तो महसूस हुआ कि झंडारोहण के बाद राष्ट्रीयगान वाले सिर्फ कुछ ही लोग थे। मज़दूर महिलाऒं की बात छोड दी जाये क्योंकि अधिकांश अंगूठा छाप हैं। लेकिन बाकि लोगों की बात करें तो ? हम में से कितने है जो ऐसे समारोह में शिरकत करते हैं ।या साल में कितनी बार राष्ट्रगान गाते हैं। मैंने खुद याद करने की कोशिश करी तो याद आया पिछली बार पन्द्रह अगस्त को गाया था। गाया या बुदबुदाया ................ अगली बार शायद फिर स्वतंत्रता दिवस को ही गुनगुनाऊंगी।
उत्साह जैसे लाख चाह कर भी नहीं महसूस हो रहा है। वो रोमांच कहां गया जब बचपन में दस-पन्द्रह दिन पहले से गणतंत्र दिवस की बाट जोहते थे।अपने स्खूल में सिखाई गई ड्रिल को मोहल्ले को बच्चों को इक्ठ्ठा करके सिखाते थे।जब कोई नहीं मिलता तो दोनों भाई-बहिन एक-दूसरे की सशर्त ड्रिल देखते थे।परेडग्राउंड में पापा को यूनीफार्म में देख हम दोनों गर्व से इतराते थे। सहपाठियों की काना-फूसी और प्रश्न बार-बार आते-"तेरे पापा पुलिस में हैं क्या'?बाल सुलभ बुद्धि से तत्परता से जवाब देती -"नहीं, उससे भी बडे हैं। पता है- एन सी सी ऑफीसर हैं"।
वो भी याद है रिदम बिगडते ही लेझीम की हाथ पर चोट तडपा गई थी। पर सर ने कहा था- सबसे अच्छी ड्रिल हमारी होनी चाहिये ।इसलिये आंखों में आंसू भरकर भी बिना रुके करते गई थी।वो दिन भी याद है जब गणतंत्र दिवस को भय्या और मैं पिटे थे।साल में दो बार-पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को मम्मी स्कूल सफेद सिल्क की साडी जिसका एक अंगूल का लाल पाट था पहन कर जाती थी।उस दिन भी उन्होंने वो साडी निकाली पर बार्डर गायब। मां को समझ नहीं आ रहा था कि ये वो ही साडी है या कोई ऒर । अगर वही है तो बार्डर कहा गया? तभी भैया से चिढी हुई मैंने पोल खोल दी कि इसने लाल पाट को फाडकर पतंग की पूंछ बना ली थी। दूर से भैया चिल्लाया "झूठ्ठी तेरी पतंग की भी तूने पूंछ बनायी थी"। हां, पर फाडी तो तेने थी ना। इतरा तो तू रही थी देख कैसी-मेचिंग-मेचिंग पूंछ है। मां का गुस्सा सातवें आसमान पर था और अगले ही पल हमारे लाल-लाल गाल।
खैर गणतंत्र दिवस बीत रहा है।आज जो गाने सूने है अब अगली बार पन्द्रह अगस्त को सुनने को मिलेंगें। मैं अभी भी असमंजस से घिरी उस उत्साह और रोमांच की तलाश में हूं जो राष्ट्रीय पर्व को लेकर होना चाहिये।
Saturday, January 26, 2008
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5 comments:
चलिये जी, जैसे आप लोगों की लाल पूंछ वाली पतंग आसमान में उड़ी होगी, वैसी भारत की शान आसमान में लहराये।
रेलवे के समारोह में आज जनता काफी थी - शायद इसलिये कि रेलवे में लोग भी बहुत हैं। पर सामान्यत: लोगों का राष्ट्र उत्सवों को लेकर उत्साह अवश्य मन्द पड़ा है।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें...आज रस्म अदायगी ही रह गई है वह भी हो जाये तो गनीमत समझिये...आज मेरा एक आर्टिकल छपा है अमर उजाला में अवश्य देखियेगा इसी विषय पर व्यंग्य है...
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये।
क्या बात है,
मतलब कि अपने दिनों में आपने भी उधम मचाने मे कोई कसर नही छोड़ी थी।
कहना आपका सही है क्यों हममें से वह रोमांच और उत्साह गायब होता जा रहा है।
anuradha jee,
saadar abhivaadan, sahee kaha apne magar ye to aaj har baat aur har jazbaat mein hee dekhne ko mil rahaa hai . aane wale kal kee kalpana se man aahat ho jaataa hai.
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