कुछ दिन पहले समाचार पत्र में छपे एक समाचार ने सबसे ज्यादा विचलित किया । २२ गायों को मार डाला गया वो भी इतने बर्बर तरीके से कि पढ कर खून खौल उठा।
हमारे यहां -जहां गाय को मां का दर्जा दिया गया है।जिसे पूजा जाता है उसके साथ ये सलूक ? गौ ग्रास निकालने की परम्परा आज भी कई परिवारों में है। पहली रोटी गाय के लिये बनाई जाती है और परिवार के सबसे छोटे सदस्य के हाथ से खिलवाई जाती है ताकि ये परम्परा संस्कार के रुप में पीढी दर पीढी चलती रहें।
जैसलमेर के छत्रेल गांव की ये घटना है -गायों को पहले कीटनाशक पिलाया गया, फिर ट्रेक्टर के आगे दौडा-दौडा कर मार डाला गया। गायों की खालों का अवैध धंधा करने वालों की ये कारस्तानी है अथवा गोचर भूमि पर अतिक्रमण करने वालों की अभी तक ये सुनिश्चित नहीं हो पाया है। किसी भी मूक निरीह जानवर के साथ ऐसा बर्ताव क्या अमानुषिक कृत्य नहीं है ? क्या ये सहनीय है ?आखिर कब तक यूँ ही चलता रहेगा ।
Friday, October 12, 2007
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10 comments:
दोषियों को कडी सजा दी जानी चाहिये -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
शायद हमारी संवेदनाएँ भी प्रदूषित हो चुकी हैं. यकीन नहीं होता कि ऐसा बर्बर काँड हो सकता है.
आपके ब्लॉग को पढ़ने पर कई कविताओं ने दिल को छू लिया. जैसे 'अंर्तमन'
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
अमानुषिक कृत्य -निन्दनीय.
अफ़सोस। लेकिन वहां तो वसुन्धरा जी हैं मुख्यमंत्री। कोई कार्रवाई नहीं हुई।
अमानुषिक्………
पर मनुष्य मनुष्य के साथ भी मानुषिक व्यवहार कहां करता है अब यही तो दिक्कत है!!
ऐसे लोगों के खिलाफ काम करना चाहिए. कम से कम एक शिकायत तो सरकारी रिकार्ड में दर्ज करवा ही देना चाहिए.
ऐसे निम्न कोटि के चाण्डालों को गाली भी दें तो कौन सी?
हमारी संवेदनाएँ भोथरी हो गईं हैं । प्रत्येक प्राणी में वही शक्ती है जो हममें है। लेकिन जन इनसानों की परवाह नही है तो गायों का कया कहें । यह पैसे का लालच और घमंड ही है जो ये काम करवाता है ।
पढ कर मन आहत हुआ ।
हमारे यहां -जहां गाय को मां का दर्जा दिया गया है।
परेशानी इस बात की है अब माँ को ही कितना आदर मिलता है, माँ से तो फिर भी अपना गहरा नाता होता है, फिर गाय पर किसी के सम्वेदना कैसे जगेगी?
संवेदना शब्द तो अब शायद ही किसी डिक्शनरी में बचा हो। बचा होता तो, ऐसी खबरें कैसे बनतीं।
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