Friday, October 19, 2007

सर्वे या मखौल

"यत्र नारीयस्तु पुज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता"ये सूक्ति तो हमारे देश में सदियों से चली आ रही है। नारी सम्मान का महत्व और आवश्यकता सब ही जानते हैं। घर की धूरी यानि महिला।
आधुनिक परिवेश और बदलती मानसिकता कहें या विकृत मानसिकता जिसकी बानगी है -नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ।
भारत सरकार के लोक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने कुछ दिन पहले ही अपने तीसरे ऐसे सर्वे की अंतिम रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के कुछ अंश से ये निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि 54% महिलायें पति के द्वारा पीटे जाने को उचित मानती है । क्या कोई इस बात को सर्हष मानेगा ? ये तो है एक मामूली सा नमूना है।
इस सर्वे में पूछे गये प्रश्न बेहुदगी की हद तक गिरे हुये है -उदाहरण स्वरूप -आपको सबसे पहले संबंध बनाने के लिये किसने मजबूर किया?मौजूदा पति ने ,पूर्व पति ने ? दोस्त ने?पिता ने?सौतेले पिता ने?अन्य रिश्तेदार ने?ससुर ने? शिक्षक ने?वगैरहा वगैरह।
ये तो मात्र दो सवाल है ।कल्पना करी जा सकती है कि शेष 1026 प्रश्न किस तरह के होंगे?कुछ प्रश्नों की भाषा व प्रारुप इतने निम्न कोटि के हैं कि उनका उल्लेख करना भी मुमकिन नहीं है।
यह सर्वे इस लिये किया गया ताकि इसी के आधार पर देश की स्वास्थ्य संबंधी नीतियां व बजट तय किया जायेगा। दूसरी बात की यदि इतने प्रश्न थे तो उनको पूछा भी गया था या वैसे ही खानापूर्ति कर दी गई क्योंकि किसी को भी इस प्रश्नावली का उत्तर देने में कम से कम 17 घंटे लगेगें यदि एक मिनिट भी एक प्रश्न को दिया जाये तो।
राजस्थान में सर्वे करने वाली मुख्य एजेंसी के निदेशक डा. एस. डी .गुप्ता के अनुसार प्रश्नावली "केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पैनल ने तैयार की थी।" स्वास्थ्य विशेषग्य डा उदय पारीक के अनुसार "यह हेल्थ स्टडी का सर्वे है या सेक्सुअल बिहेवियर का"।
सर्वे एजेंसी के अनुसार सर्वे के लिये टीम लीडर और सर्वेयर को मिलाकर राजस्थान में फील्ड में 64 लोग लगाये गये थे। इन लोगो का एक दिन का खर्चा 300 रुपये था। यानि एक दिन का 19200 रुपये। चार महीने तक ये सर्वे चला था। इस तरह से सर्वे का काम करने वालों को दिये गये 23 लाख रुपये। एजेंसी के अनुसार 3892 घरों में सर्वे किया गया । यह खर्चा 11,67,600रुपये होता है।एजेंसी की फीस ,प्रदेश भर के आंकडों को मिलाकर कंपाइल कराने का खर्च अलग और अन्य खर्च अलग है।
सवाल ये है कि हकीकत में क्या हुआ ? सर्वे हुआ भी या इसका अस्तित्व सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहा दूसरे ये कि ऐसे सर्वों का औचित्य ?
दैनिक भास्कर से साभार -

6 comments:

Sunil Deepak said...

अनुराधा जी, यह लम्बे लम्बे सर्वे जिसको भरने में आधा दिन निकल जाये कितना सच जोड़ते हैं और कितनी अटकलें, यह तो सोचने की बात है. पर जो प्रश्न उठाये गये हैं वह मुझे अवश्य गम्भीर और महत्वपूर्ण लगे. यह जानना कि बहुत सी महिलाओं के लिये घर में मार खाना सामान्य बात है या कि घर में अपने ही बंधु भी बलात्कार कर सकते हैं, इन स्थितियों से लड़ने के लिये और उन्हें बदलने के मार्ग दिखा सकते हैं. यह बात अवश्य है कि यह बातें सर्वे से बाहर आ सकेंगी या इन को समझने के लिए कुछ अन्य तरीके का प्रयोग किया जाये, यह विचारनीय बात है.

36solutions said...

अनुराधा जी इस विषय पर मेरा मानना है कि ऐसे सर्वे गैर सरकारी संगठनों के द्वारा कराए जाते हैं या सरकार के निचले तबके के राजस्‍व व शिक्षा विभाग के कर्मचारियों से कराए जाते हैं, जैसा कि आपने खर्चे का जो विवरण दिया है उसके अनुसार यह सर्वे गैर सरकारी संगठनों के द्वारा ही कराया गया है जहां एक दो प्रश्‍नों को छोडकर बाकी के प्रश्‍न नहीं पूछे गये हैं कुल मिलाकर यह सर्वे उस गैर सरकारी संगठन की सोंच है जनता का नहीं ।
गैर सरकारी संगठनों के लिए ही एक सूक्ति भारत में काम करता है 'सर्वे भवंतु सुखिन:' सर्वे का 'ठेका' लो और खुद के साथ साथ सरकारी अमले को भी खुश करो क्‍योंकि बेरोजगारी के दौर में इसमें खर्चा कम फायदा अधिक है ।

'आरंभ' छत्‍तीसगढ का स्‍पंदन

Atul Chauhan said...

सर्वे के नाम पर आजकल फूहड,भद्दे,वकवास सवाल न केवल महिलाओं से पूछे जाते हैं,बल्कि उनको जबाब देने पर विवश होना पड्ता है। उदाहरणस्वरूप उत्तराखन्ड में सरकारी सेवारत महिलाओं से उनके 'सेफ' दिन की तारीख क्या है ? यह सवाल उनकी पंजिका में पूछा गया है।सवाल उठता है कि पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं की यह स्थिति कब तक रहेगी?

अनूप शुक्ल said...

यह तो माखौल ही हो रहा है सर्वे के नाम पर!

अनूप शुक्ल said...

यह तो माखौल ही हो रहा है सर्वे के नाम पर!

Asha Joglekar said...

सर्वे इस बात का प्रमाण है कि प्रश्नावली सीधे सीधे किसी दूसरे देश के Questionaire का भाषांतर है । वह भी हमारे देश के लोगों के रहन सहन, संस्कृती तथा भावनाओं को ताक पर रखकर ।