आधुनिक जीवन शैली की देन कि आदमी भीड में भी तन्हा है-
आदमी
मैं अवसादों से घिरा एक आम आदमी
दिक-भ्रमित,विश्रान्त आदमी
अनिश्चय की साकार मूर्ति
मैं एक क्लान्त आदमी
बाहें पसारें समा लेने को सारा जग
पर पाता मृग-मरीचिका शून्य
एक बार फिर मैं असहाय आदमी
उद्वेलित, आलोडित एकाकी आदमी
7 comments:
आज के समय में हमारी बदलती जीवन पद्धति में एक आम आदमी की सोच और इच्छाओं को बहुत सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया है आपने. बधाई स्वीकारें.
इंसान जो होता है वो होता नही, जो नही होता है वो होने की कामना करता है... यही से सारी परेशानियाँ होती है... सही चित्रण है.. बधाई।
अच्छा है। लिखती रहें, अवसाद कम होंगे।
wah its quite natural.i loved the message wat was hiden in the poetry.keep it up.try to write about the problems of children also.
Thanks
Alok nigam
बढिया चित्रण किया है मानव के मनोभावों को, धन्यवाद ।
मैं नहीं हूं इस कविता में इसलिए जुड नहीं पा रहा हूं । कुछ मेरे लिए भी लिखें ।
(मैं एक विवेकहीन मनुष्य जो आपकी कवितायें पढ नहीं पाता)
संजीव का 'आरंभ'
यूनिकवि चुने जाने पर हार्दिक बधायी।
aadhunik jeevan shailey har baat ka jawab hai aaj kal.aapki aadhunik jeevan shailey ki paribhasha kya hai?
Post a Comment