आईना
अपनी वाणी को झोली में बांध
दुछत्ती पर चढा मैं खूश हूं
भूल चुकी कभी मैं भी
प्रतिक्रिया व्यक्त करती थी
होते देख अन्याय सुलग पडती थी
अब नजरिया बदल
हर बात में कारण खोज लेती हूं
ऐसा तो होना ही था
मान लेती हूं
गलती शायद मेरी ही है
खुद को समझा लेती हूं
कई बार आइने में
अपनी शख्सियत खोजी
एक परछाईं तो दिखती है
पर मैं कहां हूं ?
अभी तक नहीं जान पायी
तुम कहते हो शायद मैं मर चुकी
नहीं ऐसा नहीं
बिल्कुल नहीं
मैंने अपना वज़ुद खोया
पर
कितनों के चेहरे की हंसी बनी
मेरा परिचय- नारी हूं
मात्र नारी
दुछत्ती पर चढा मैं खूश हूं
भूल चुकी कभी मैं भी
प्रतिक्रिया व्यक्त करती थी
होते देख अन्याय सुलग पडती थी
अब नजरिया बदल
हर बात में कारण खोज लेती हूं
ऐसा तो होना ही था
मान लेती हूं
गलती शायद मेरी ही है
खुद को समझा लेती हूं
कई बार आइने में
अपनी शख्सियत खोजी
एक परछाईं तो दिखती है
पर मैं कहां हूं ?
अभी तक नहीं जान पायी
तुम कहते हो शायद मैं मर चुकी
नहीं ऐसा नहीं
बिल्कुल नहीं
मैंने अपना वज़ुद खोया
पर
कितनों के चेहरे की हंसी बनी
मेरा परिचय- नारी हूं
मात्र नारी
13 comments:
सुन्दर भाव भरी कविता... शायद इसी गुण के कारण नारी को अत्याधिक सहनशीलता की पदवी से नवाजा गया है...कारण तलाश कर कम से कम मन को थोडी देर के लिये तो समझाया जा सकता है..बाकी को प्रभू इच्छा ही मान लेना अच्छा है
औरत होने का सच और जीवन से छोटे छोटे समझौते फिर भी कम से कम मन मे अहसास को जिंदा रखना और इस सब के बीच दूसरों के होठों पर हंसी लाना. बड़े अर्थो में ये भी जीवन की सार्थकता है.
नारी का शशक्त चित्रण,
आपको बधाई.
बहुत प्यारी कविता. धन्यवाद.
सुन्दर, नारी मन की वस्तविक-मनोस्थिती को दर्शाती आपकी कविता.. मोहिन्दर जी सही कह रहे है यही वजह हैं जो नारी को महान बनाती हैं परंतु एक पक्ष अभी आपकी कविता में छुपा हुआ है.. :)
बहुत बहुत बधाई
बहुत ही भावपूर्ण उम्दा रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार .
अपनी वाणी को झोली में बांध
दुछत्ती पर चढा मैं खूश हूं
भूल चुकी कभी मैं भी
प्रतिक्रिया व्यक्त करती थी
होते देख अन्याय सुलग पडती थी
अब नजरिया बदल
हर बात में कारण खोज लेती हूं
वाह वाह बहुत बढ़िया लिखा है।
सुंदर अभिव्यक्ति! मोहिन्दर जी से सहमत हूँ.
सरल और सुंदर किंतु कितनी गूढ़ कविता है आपकी ... थक कर, निराश होकर शायद सभी नारी ऐसी हो जाती हैं लेकिन मुस्कान तो वो औरों की हमेशा रहती हैं
बहुत सुंदर कविता है. "हर बात में कारण खोज लेती हूं" किसी क्रिया से प्रतिक्रिया होती है. यदि प्रतिक्रिया हमारी अपेक्षा के अनुरूप ना हो तो क्या हमारी उस क्रिया में ही कहीं खोट तो नहीं. कारण खोजना ही होता है. यही तो जीवन दर्शन है. आभार.
http://mallar.wordpress.com
हर चिंतन हर विचार को वक्त के साथ ,परिस्थितियों के साथ बदलना पड़ता है /कभी कभी गलती न होते हुए भी यह कह कर संतोष करलेना कि शायद गलती मेरी ही हो इससे भविष्य में होने वाली टकराहट से तो बचा जा सकता है लेकिन एक फाँस दिल में चुभी रह ही जाती है /यदि परिचय नारी है और इस कारण बजूद खोया है तो यह ऐसा आक्षेप है जो साधारण तौर पर लगा ही दिया जाता है जैसे परीक्षा में फेल हो गए (शिक्षक नाराज़ था ) इंटरव्यू में सेलेक्ट नही हुए (गरीब थे देने को पैसा न था ) चुनाब में हार गए (विपक्षी ने धांधली की )/जो भी अपना वजूद कायम नही रख सकता वह परिस्थितियों को दोष देकर अपनी कमजोरी छुपाया करता है /यही काम आपकी कविता कर रही है / आपकी कविता ने सारी असफलता ,कमजोरी ,साहस का आभाव ,कुछ करने की तमन्ना का अभाव ,परिस्थितियों से मुकावला करने का आभाव इस बात में छुपा दिया है कि ""मात्र नारी ""व्यक्ति दूसरों पर या परिस्थितियों पर दोषारोपण करके कभी सफल नही होता है /किसी की सख्सियत खोजने से कोई नही रोक सकता बशर्ते कि वह परिस्थितियों पर दोष माड़नेकी वजाय स्वम प्रयास करे
आपने नारी-मन की दुविधा
और विवशता को
सहज किंतु बहुत संवेदनशील
अभिव्यक्ति दी है....सुलझा,सधा
हुआ लेखन है आपका.
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शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
sundar likha hai....
ek prashn hai- nari ka srijan niyati karti hai ya... fir har nari ke sath hi ek niyati ka srijan ho jata hai..?
sach kahun to mai har bandhan se dur hona chahti hun..muze chidh hoti hai jab devi ki upama dee jati hai nari ko... kya achha ho agar purush jati khud ko devata banane ke liye prayatnashil ho jayan aur hame inssan samajhne ki bhul bhar ban jayn...
ant me dhanyawad... nayee hun is blog ki dunia me... ab tak to pata b nahi tha ki muze ap jaise manishiyon ki prashansha bhi mil sakti hai...
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