कल शाम से मन उदास है। बदलती फिज़ा शायद अहसास दिला रही है कि बहुत कुछ बदल गया और उतनी ही तेजी से बदलता जा रहा है। मुठ्ठी से दरकती रेत की मानिंद ।
"पधारो म्हारे देस" की गुहार लगाने वाला गुलाबी नगर कल लाल रंग से रंग दिया गया। महज आतंक फैलाने के लिये। ये सब करके क्या हासिल करना चाहते हैं ? बेगुनाहों के मौत का मंजर क्या विचलित नहीं करता। जैसे ही सिलसिलेवार विस्फोटों की खबर सुनी । एकबारगी तो विशवास नहीं हुआ फिर अगले पल शुरू हुआ फोन करने का क्रम सबसे पहले अपनी बेटी को फोन करके पूछा कहां हो? सुरक्षित है जान कर सांस में सांस आयी फिर अपने नजदीकी रिश्तेदारों को।
नज़रें टीवी पर चिपकी हुई । विचलित और हतप्रभ से हम सब । ना जाने कितने विचार ,आक्रोश और मन में ढेर सा असन्तोष। कौन जिम्मेदार है हमारी नीतियां, हमारा कानून ,नेता या सत्ता की लोलुपता आखिर कौन ? एक के बाद एक सुनियोजित हमले और उनको रोकने में विफल हमारा तंत्र । ये सिर्फ जयपुर पर हुए हमले की बात नहीं है । हर वो जगह जहां इस तरह के हादसे हुये हैं और ना जाने कितने बेगुनाह मारे गये हैं। लचर कानून की आड व लम्बी कानूनी प्रक्रिया शायद आतंकियों के हौसलें बुलन्द किये हुये है। कुछ भी हो ऐसे हादसों की पुनरावृति रोकने के लिये यदि बर्बर कानून बना लेने चाहिये ताकि कोई भी इस तरह की घटना को अंजाम देने से पहले सौ बार सोचे।
हर बार खून के इस मंज़र को देख कर मन खून के आंसू रोता है । आखिर कब तक ? उनका क्या जिन्होनें अपने लोग खोये हैं। वाकई अभी भी विचलित हूं। एक असाहयता का भाव हावी होता जा रहा है। हम मूक दर्शक बने सब देखते हैं , सहते हैं पर करते कुछ नहीं। काश इन सबको समय रहते नियंत्रित कर लिया जाये । अन्त में उन सब हताहतों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ।
Wednesday, May 14, 2008
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11 comments:
आपका चिंतन सर्वव्यापी हो । आतंक की समाप्ति मानसिक प्रेरणा से ही संभव हो सकता है ।
ईश्वर मृत आत्माओं को शांति प्रदान करें एवं आतंकियों को सदबुद्धि ।
ठीक कहा आपने, खुन के आँसु रोने के सिवा कोई और जरिया ही नही होता । मुझे रात ११ बजे खबर लगी, तुरत फ़ुरत मे मै जितना कर सकती हूँ, ग्रुप एनर्जी हीलीग हम बहनो ने दिया, रात भर नीद नही आयी, लेकिन सुबह नार्मल ही गया, न्युज खोला तो बस अब वहाँ तमाशा ही लग रहा था... भगवान जी घायलो और उनके परिजनो तथा मृतको के परिजनो को सुरक्षित करे।
तथा सरकार थोडा बल-बुद्धि दे, ताकि आगे ऐसे हादसो को वक्त पर रोका जा सके।
हर बार खून के इस मंज़र को देख कर मन खून के आंसू रोता है ।
यथार्थ। सरकार पता नहीं कब तक मूक बनी रहेगी।
अनुराधा जी ऐसे हमलों मे हमेशा ही निर्दोष लोग मारे जाते है।
भगवान् मृत आत्माओं को शान्ति दे और उनके घर वालों को इसे सहने की शक्ति दे।
अब तक राजस्थान बचा हुआ था लेकिन वहां बी जे पी की सरकार होने के कारण शायद ऐसा करना ही था आतंकी संगठनों को।
श्रद्धांजलि मृतकों को।
आतंकवाद का मकसद है समाज को बाँट कर अपना मतलब हल करना, समाज की एकजुटता ही इस का जवाब है।
aहर बार खून के इस मंज़र को देख कर मन खून के आंसू रोता है । आखिर कब तक ?
सचमुच अनुराधा जी इस प्रश्न का उत्तर आज किसी के पास नहीं।
इसी विषय पर मैने आज अपनी एक रचना भी पोस्ट की है www.rajeevnhpc.blogspot.com पर देखियेगा।
***राजीव रंजन प्रसाद
सच मे उदासी लाजिमी है...इंसानियत का मखोल उडाते है कुछ लोग ,बेबसी ,गुस्सा ओर हताशा सी महसूस होती है....पुरा देश इस गम को महसूस कर रहा है....हिम्मत रखिये......इसे लोगो से हारना उनको बढावा देना है....
हर बार खून के इस मंज़र को देख कर मन खून के आंसू रोता है । आखिर कब तक ? --------
इंसानियत पर यही प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है. आखिर कब तक ,,,, और क्यों????
बेगुनाहों की मारने वाले मानव के अन्दर दानव रहता है शायद इसलिए वे विचलित नही होते.
अत्यंत दुखद एवं निन्दनीय घटना.
भगवान् मृत आत्माओं को शान्ति दे और उनके घर वालों को इसे सहने की शक्ति दे।
बिल्कुल - "आखिर कब तक ? उनका क्या जिन्होनें अपने लोग खोये हैं?" सोच कर दुःख गुस्सा खीज असहायता सब बढे आते हैं - लेकिन बर्बर क़ानून हमारे देश में बनेंगे तो और बर्बर हादसे सरकारी हाथों से न होंगे ? - क्या करें ??
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