अंतर्मन
मैं नहीं चाहती मौन रहना
पर मेरी मुखरता मुझ अकेली की नहीं है,
तमाम नारियों का प्रतिनिधित्व करती हूँ।
कुछ किताबों में पढी आदर्श बातें,
चन्द भाषणों के अंश,
कुछ टिप्पणियां
और
कुछ कसकता मेरा अंतर्मन।
मैं चिल्लाना चाह कर भी मौन हूँ,
भीड में कौन सुन पायेगा,
समर्थन दे पायेगा?
मेरा अंतर्मन वाचाल है,मुखर है्।
मैं नहीं चाहती मौन रहना
पर क्या कोई इसे सुन पायेगा,
हाँ! सुनकर
सदियों से चली आ रही परम्परा का
पाठ जरुर पढायेगा।
नारी होने का अहसास जरुर करायेगा,
कुछ नहीं तो मौन रहने का भाषण जरुर दे जायेगा
नहीं चाहती मैं मौन रहना!!
14 comments:
see i m not interested to give any comment but one thing is sure that u have enormous capability to write true view of humane nature and its surroundings.all the best
इस पंक्तियों में बहुत अधिक पीड़ा है-
सदियों से चली आ रही परम्परा का
पाठ जरुर पढायेगा।
नारी होने का अहसास जरुर करायेगा,
कुछ नहीं तो मौन रहने का भाषण जरुर दे जायेगा
मैंने भी स्त्री-मन की इसी ऊँहा-पोह को अपने एक नाटक में लिखा है। हालाँकि वो इतना सुंदर नहीं बन पाया है।
अनुराधा जी हिन्दी ब्लॉग-जगत में आपका स्वागत है।
अनुराधा जी,
हिन्दी चिट्ठा-जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. अब तक आपकी जो २-३ कवितायें पढ़ीं हैं, उस आधार पर में कह सकता हूँ कि आप एक सामान्य व्यक्ति विशेषतः स्त्री के विचारों को काफी प्रभावपूर्ण तरीके से सामने लाती हैं. इस कविता में भी आपने समाज में नारी और उससे जुड़ी दकियानूसी सोच को निशाना बनाने के साथ-साथ आधुनिक नारी के विचारों को बहुत सूंदर ढंग से प्रकट किया है.
इस सुंदर रचना के लिये आप निस्संदेह बधाई की पात्र हैं.
अनुराधा जी मै कुछ नही कहूँगी कि क्युँकि वो घिसी पिटी बात होगी.. "वाह बहुत अच्छा लिखा है.. इत्यादि"
बस इतना कहना है कि... अपनी आवाज मे वो दम लाना होगा जो भीड़ मे अपनी पहचान बनायें, बने बनाये रास्ते पर चलना तो सबको आता है.. पर अपना रास्ता हम खुद बना सके, शायद इसलिये अभी तक हमे नारी होने का पाठ पढाया गया है... अब जरूरत है.. कि हम इन किवदंतियो से आगे बढ़ सके... ताकि हमारे मौन मे भी उस नाद की हूँकार हो जो नये समय का आगाज करे।
स्वागत अनुराधा जी, नारी मन की सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुत किया है ।
स्वागत है हिन्दी चिट्ठाकारी में. मौन रहने की जरुरत नहीं, खूब लिखिये. शुभकामनायें.
-समीर लाल
Main bhee ho jau bewafa to kaisa lagega..
Na manau jab tu ho khafa to kaisa lagega..
Mana ki laakh aaib hai mujhme lekin..
Mai bhee ho jau tere jaisa to kaisa lagega..
Ek arse se nahi soya hoo tujhe yaad kar kar ke..
Ab mai tujhe bhee jagau to kaisa lagega...
U hee keh deta hoo haale dil chupate chupate..
Ab SHAYARI bhee na banau to kaisa lagega..
Aapki kavita pedhker bhout acha laga..........wht can i say abt tht now
आपकी यह पहली रचना ही आपके भाव और आपकी परिपक्वता बता रही है, सुंदर अभिव्यक्ति!!
जारी रखें!
शुभकामनाओं के साथ स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में ।
ये जब समीर लाल जी स्वागत कर चुके हैं तो मान कर चलें पथ प्रशस्त है! नये चिठेरों के गुरू कहाये जाते हैं! टिप्पणी करना कोई इनसे सीखे! :)
पर मेरी मुखरता मुझ अकेली की नहीं है,
तमाम नारियों का प्रतिनिधित्व करती हूँ।
अनुराधा जी.. नारी ही क्यों.. मनुष्य क्यों नहीं।
कविता की घोषणा ने ह्रदय को आह्लादित किया। बधाई हो। हिन्दी चिट्ठाकारी जगत में आपका स्वागत है।
अनुराधा जी, आपकी कविता की पंक्तियों में एक स्त्री की पीड़ा प्रदर्शित हो रही है। वह चाहकर भी बहुत से काम नहीं कर पाती है। इस रचना के लिए आप बधाई की पात्र हैं।
स्वागत! आपके और मेरे ब्लॉग हमनाम हैं!http://antarman.blogspot.com
bahut badiya....................
bahut badiya..................
Post a Comment