Monday, November 5, 2007

एक परम्परा यह भी

"हताई" गाँव में किसी भी समस्या के समाधान के लिये जो बैठक बुलाई जाती है, उसे हताई कहते है। इसमें सिर्फ गाँव के पुरुष ही हिस्सा लेते हैं। हताई को एक तरह से गाँव का कोर्ट भी कह सकते हैं। छोटे-मोटे झगडे,मनमुटाव आदि यहाँ पर निपटाये जाते हैं। तथा गाँव के हित में लिये जाने वाले निर्णय भी यहीं लिये जाते हैं।

हताई में किसी भी महिला का भाग लेना तो दूर उस स्थान के नजदीक जाना तक उसके लिये निषेध होता था।पर समय के साथ कई जगह अब परम्परायें भी बदल रही हैं।

भीलवाडा जिले के उप तहसील करेडा के पास सिंजाडी का बाडिया में दलित महिलायें भी गुर्जर समुदाय के साथ हताई में भाग लेती हैं। महिलाऒं के इसमें शरीक होने से दो फायदे हुए एक तो दोनों समुदाय के बीच के टकराव कम हुए। दुसरे गाँव से जुडा कोई भी मामला अदालत तक नहीं पहुँचा । पिछले दस सालों से यह बदलाव आया है । ग्रामीण स्तर पर शुरु होने वाली कई परियोजनाऒं में महिलाऒं की सक्रिय भागीदारी है।शुरु में महिलाऒं की भागदारी को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई।विरोध के स्वर भी उठे पर बाद में सामाजिक स्तर पर आये परिवर्तनों ने विरोधियों को चुप होने पर मजबूर कर दिया।

9 comments:

आलोक said...

बहुत खुशी की बात है यह।

कथाकार said...

अनुराधा जी
बीच बीच में वक्‍त निकाल कर ब्‍लॉग प्रदेश की सैर को निकल जाता हूं. आज घूमते हुए आपके ब्‍लोग की तरफ आना हुआ. अच्‍छा लगा कि आप इतना काम कर रही हैं और इतनी तरह का काम कर रही हैं. बधाई और शुभकामना कि खूब अच्‍छी रचनाएं दें

Sanjeet Tripathi said...

महिलाओं की भागीदारी से बदलाव आना तो तय ही है!! यह तो खुशी की बात है कि ऐसे आयोजनों में अब महिलाओं को भी प्रतिनिधित्व मिल रहा है!

गरिमा said...

बढ़िया खबर...

मीनाक्षी said...

बहुत अच्छी जानकारी .

mamta said...

जानकारी देने का शुक्रिया ।

सुनीता शानू said...

महिलाओ की भागीदारी कभी-कभी बवाल भी खड़ा कर देती है,मगर कई काम सुलझ भी जाते है...

Manas Path said...

क्या खाक पढें. हमारे कप्यू. पर फ़ांट ही नही दीख रहा.

अतुल

Udan Tashtari said...

महिलाओं की भागीदारी का समाचार शुभ है. अच्छा लगा जानकर.