Monday, March 2, 2009

देह से इतर मन-प्राण और भी है............

नारी शोषण की बात कोई नयी तो नहीं है फिर भी हर बार ये कचोटती है विचलित करती है। आदिमकाल से चली आ रही शोषण की व्यथा व कथा आज भी कायम है। कभी प्रतिशोध के तहत उसे रौंदा गया तो कभी जश्न कै बतौर भोगा गया। लेकिन शोषित तो एक वर्ग ही रहा ना। अफसोस तब और अधिक होता है जब बदलते परिवेश व अधिकार की दुहाई दी जाती है। लेकिन उस सबके बावज़ूद आज भी आदिम परम्परा के रुप में नारी को ही शोषण का केन्द्रबिन्दु बना दिया जाता है। आदिवासी कबिलों की बात तो दीगर ये सब मुख्यधारा में रहने वाली नारी के साथ हो रहा है। कार्यक्षेत्र हो या स्कूल या कालेज हर बार दोषी भी वही करार दी जाती है।

कुछ दिन पहले महिला नक्सलवादी की एक टिप्पणी ने स्तब्ध कर दिया जिसमें उसने कहा था कि जंगल में रात के अंधेरे में उसके साथ शरीरिक सम्बन्ध बनाने वाला कौन है वो खुद भी नहीं जानती थी। समूह का कोई भी पुरूष सदस्य उनके साथ सम्बन्ध स्थापित कर सकता था और वो प्रतिवाद भी नहीं कर सकती थी। अपनी विवशता और नक्सलवाद से मोहभंग ने ही उन्हें फिर से मुख्यधारा में आने के लिये प्रेरित किया और वो आत्मसमर्पण के लिये तैयार हुईं। कुछ महिला नक्सलियों का एडस से ग्रसित होना इसका प्रमाण है।

धौलपुर के ईनामी डकैत जगन गर्जर पर भी उसके दल की महिला सदस्यों ने भी कुछ इस तरह के आरोप लगाये हैं।
दल में महिलाऒं के शामिल होने की भी अपनी वजह है। अपह्रत महिला शारीरिक शोषण का शिकार बनायी जाती थी।किसी तरह वो उनके चंगुल से बच निकलती तो परिवार व समाज से बहिष्कृत कर दी जातीं।उसके बाद इन महिलाऒं के पास अन्य कोई विकल्प नहीं होता और वो उस दल की सदस्या बना ली जाती। डकैतों को पनाह देने वालों को बतौर उपहार उस रात महिला सदस्य को उसके सुपुर्द कर दिया जाता है। यही नहीं दल के अन्य पुरूष सदस्यों का भी उन पर अधिकार होता है और वो किसी भी तरह की मनमानी के लिये स्वतन्त्र है।

इन सब घटनाऒं को देखते -सुनते हुए मन आहत है। बार-बार यही लगता है देह से इतर मन-प्राण और भी है।