Monday, October 29, 2007

करवाँचौथ

हमारा पहला करवाँचौथ एक आयोजन जैसा था ।दो महीने पहले से मम्मी की खतो-कितावत शुरु हो गई थी।मजमून रहता था एक ही आपके यहाँ क्या रस्में होती है?कितनी साडी लानी है ,कितने करवें लाने है? कब आना होगा वगैरह वगैरह।
मुझे जरुर कुछ अजीब सा लगता था। सीधे-सादे तरीके से मम्मी को व्रत करते देखा है बस ।जब-तब मौका पाकर अपनी मम्मी को घुडकी मारती थी -आपको क्या जरुरत है ? क्यों पूछती हो ? जो करना होगा वो ये लोग करेंगें करवाँचौथ तो ससुराल की होती है। मम्मी समझाती ये सब शगुन होते हैं ।पीहर वालों को करने ही होते हैं।पर मन मानने को तैयार नहीं होता था।
खैर करवाँचौथ से एक दिन पहले मम्मी ढेर सारे सामान के साथ आयी ।मम्मी को देखकर खुशी हुई और सामान को देखकर कोफ्त । कोई तुक समझ नहीं आ रहा था ।मम्मी हमारे स्वभाव को जानती थी अतः पूरे समय समझाती रही कि जो भी चीज है उसका अभी होना क्यों आवश्यक हैं।शायद तब भी बात हमारे गले नीचे नहीं उतरी थी। रात में मम्मी (सासु मां) ने पूछा तुम किस तरह का व्रत करोगी ? पानी पियोगी या नहीं ? "आप जैसा कहें" भई हम तो पानी भी नहीं पीते है साल में एक बार तो सुहाग के लिये व्रत करतें हैं ।आगे तुम्हारी इच्छा वो बोलीं।'मैं भी नहीं पीऊंगी' सुनकर वो बडी सन्तुष्ट हुई। आदेश दिया कि सुबह चार बजे जागकर नीचे आ जाना। अच्छा, मरे से स्वर में हम बोले थे नींद और वो भी सुबह की बडी प्रिय थी हमें और उतना ही अप्रिय आदेश लगा था।सुबह एकाएक भडभड कि आवाज सुनकर चौंककर जागे देखा तो मम्मी हमें जगाने आयी थी खैर अनमने मन से उठ कर आये तो पाया बहुत सारी खाने की चीजें सजायी हुई थी ,चाय भी तैयार थी।बडी झुंझलाहट हुई कि सिर्फ इसलिये जगा दिया।"मन नही हो रहा "बोला तो मम्मी बोली शगुन होता है मुंह तो झूठारना होगा ।जैसे -तैसे कुछ निगला और ढेर सारा पानी पिया।मम्मी बोली जाऔ अब सो जाऔ।तब मम्मी बडी अच्छी लगी।
सुबह से घर में उत्सव का सा माहौल था।मौका पकर पतिदेव ने फर्माया "चुपचाप पानी पिलो"किसी को भी पता नहीं चलेगा।नहीं जैसा व्रत लिया है वैसा ही करेंगें।किस के लिये कर रही हो व्रत मेरे लिये ना,फिर भी कहना नहीं मानती।अब वो भी तरह-तरह के हथकंडे अपना रहें थे। क्या दकियानुसी बातें करती हो लोग चाँद पर पहुंच गये हैं. पर ये हैं कि वक्त के साथ बदलना ही नहीं चाहती ।जब नानस्टाप भाषण शुरु हुये तो हमने आवाज़ लगायी मम्मी देखिये और ये उझल कर भागते नजर आये।
दिन में हाथों में मेंहंदी लगायी गई,पैरों में आलता, नये कपडे और नई चुडियाँ ,ढेर सारे गहने ,माँग आगे से पीछे तक भरी हुई।शाम को मनीष जब घर लौटे तो हमको देखकर भौंचक "तुमसे मना नहीं किया गया मेंहंदी के लिये , थोडा सिन्दुर क्यों छोड दिया वो भी लगा लेती,कार्टुन बनने का शौक है तुम्हें" ये चिढे हुये स्वर में बोले ।मैं रुआंसी सी समझ नहीं आता था क्या करूं । किसकी बात मानूं किसकी नहीं। कोई एक तो नाराज होगा ही ना।
उस दिन मम्मी ने तरह-तरह के खाने की चीजें बनाई।अंधेरा होते ही ननद और देवर को बारी-बारी से छत पर भेजा जाने लगा।थोडी देर बाद सारी पूजा की सामग्री के साथ सभी छत पर थे। करवाँचौथ पर कैसा चौकपूरा जाता है ये मम्मी ने बताया ।पूजा करीं अब बारी थी चन्द्रमा को अर्ध्य देने की ।इन्तजार कुछ लम्बा और लगभग असहय हो रहा था।मनीष हमारी हालत से नावाकिफ ना थे। अब चंद्रमा को देखने की कमान उन्होंने संभाली।बंदर की तरह छज्जे को पकडकर उपर वाली छत पर चढे ।निकल आया चांद ,चलो जल्दी से अर्ध्य दो ये बोले।
मैं और मम्मी आँखे फाडे असफल चेष्टा कर रहे थे। थोडी देर में चाँद दिख ही गया और पूजा पूरी करी गई।बारी-बारी से घर के बुजुर्गों के पैर छू कर सदा सुहागिन होने और पूतने फलने का आशीर्वाद लिया गया। तभी मम्मी ने बोला अपने पति के पैर छुऒ ।एक बार लगा गलत सुन लिया है।क्यों? उनके दोबारा कहने पर अनायास पूछ ही लिया।पति का पद हमेशा बढा होता है।अब तक रहा -सहा धैर्य जवाब दे चुका था ।ये भी कोई बात हुई क्या मम्मी हम बराबर के हैं -मैं बोली। ऐसा कभी होता है क्या मम्मी, हम बचपन से साथ खेलें हैं। कितनी बार तो पिटायी करी है इनकी। देखिये आपके कहने से सब कुछ तो बदल लिया नाम भी नहीं लेती हूं अब तो । अभी तक दूर खडे ये बातों का मज़ा ले रहे थे। बोले छूऒ ना। मम्मी का कहना भी नहीं मानोगी।कभी कहना मानने पर भुनभनाहट सुनती हूँ और अभी कहना ना मानने की दुहाई।क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा था। खैर काफी ना -नुकर के बाद जब पैर छुने झुकी तो ये भाग लिये।तब जा कर राहत की साँस ली वरना थोडी ही देर में हमने ना जाने क्या-क्या सोच लिया था।
अब बारी थी व्रत खोलने की अति उत्साह में मम्मी ने सब कुछ बडे प्यार से और ठूंस-ठूंस कर खिलाया पूरे दिन के बाद इस तरह खाने से जो पेट में दर्द उठा कि हालत खराब ।उस रात जिस तरह मनीष ने देखभाल करीं उससे में अभिभूत हो गई। आज इतने सालों बाद भी लगता है जैसे कल की ही बात थी।

Friday, October 26, 2007

मार्निंग वाक और हम

रोज आँख खुलते ही एक बहस शुरु हो जाती थी ।आलस्य त्यागों और मार्निंग वाक शुरु करो कभी आइने में खुद को निहार लिया करो। दिन दूनी रात चौगुनी फैलती जा रही हो पति देव की सुबह आजकल इन्हीं भाषण के साथ शुरु होती थी । हम भी पक्के मठ्ठूस एक कान से सुनते और दूसरे से बडी शान्ति से निकाल दिया करते।
पर आज तो अति हो गई वो तो पूरे हाथ-पैर धो कर पीछे पड गए । उठो वाक पर जाऔ . नहीं कोई बहाना नहीं आज से रोज जाना है। अरे भई , ये तो हमारी मर्जी जायें जायें ना जायें तो ना जायें। नहीं, बहुत चला ली अपनी मर्जी अब और नहीं ।जाना है, मतलब जाना है। मिसेज शर्मा को देखा तुमसे बडी हैं पर तुमसे कितनी छोटी लगती हैं ।कितना मेन्टेन किया हुआ है। ऒह ,तो अब हम तुम्हें दूसरी औरतों के सामने गये बीते लगने लगे हैं। अरे, मेरा मतलब ये तो नहीं था पतिदेव थोडा हिचकिचा गये । ये नहीं वो नहीं तो फिर क्या मतलब था ? मूहँ बिसूरते हुए बोली सीधे से बोलो ना।
अरे मैं चाहता हूँ तुम थोडी दुबली हो जाऔ बस। जब पतली थी तब प्राब्लम थी कहते थे यार थोडी सी चर्बी चढा लो,थोडी सी बोला था ये तो नहीं कहा था ना कि सारी दुनियाँ की चर्बी अपने ऊपर चढा लेना, अब हम भी पूर्ववत ढिठाई पर आते हुए बोले क्या फर्क पडा डिजिट ही तो बदले हैं पहले ३६ थे अब ६३ है बस इतना सा तो। फिर सोचो, नानी बनेंगें तो कितने ग्रेसफुल लगेंगे। आजकल की नानियों की तरह नहीं की नानी कौन सी है और मौसी कौन सी कुछ पता ही नहीं चलता।
धन्य हो पतिदेव खीझे स्वर में बोले। जैसी मर्जी करो ,कान पकडे मैंने ,अब नहीं कहूँगा आगे कभी भी घूमने जाऔ या एक्सरसाइज करो जितना चाहे खाऔ और मुटाऔ। ऒर सुन लो तुम भी आगे कभी भी कहा ना घुटने में दर्द है तब बताऊँगा।
बात इस तरह का रुप ले लेगी हमें अनुमान ना था।सोचा था थोडा तर्क-कुतर्क करके जान बचा लेंगें।पर यहाँ तो रुख ही बदल गया था। मन ही मन प्रण किया की अगली सुबह से वाक शुरु करके ही दम लेंगें।पूरी रात खुद को याद दिलाते रहें खैर सुबह उठ कर सैर पर भी गई।लेकिन दस मिनिट बाद वापिस घर पर , पतिदेव हमें जाते देख बडे सन्तुष्ट लग रहें थे लेकिन इतनी जल्दी वापिस आया देख थोडे खिन्न भी लगें। मैं धीरे से भुनभुनाई हम से अकेले नहीं घूमा जाता क्या करें? ये पुरानी आदत है तुम भी जानते हो ना।ठीक है कल से मैं भी चलुँगा तुम्हारे साथ। अगली सुबह हम से पहले उठ कर जनाब तैयार थे जैसे किसी जंग में जाना है। मन मार कर हम भी चल दियें। चलो आज एक नये गार्डन में चलते है ये बोले ।
हमारी शक्ल देख कर कोई भी जान जाता जैसे बकरा हलाल करने के लिये ले जाया जा रहा हो बिल्कुल वैसी सुरत बना रखी थी। साथ चलो और थोडा तेज चलो । कैसे चलूँ ? तुम तो लम्बे हो मैं नहीं चल सकती इतनी तेज। कोशिश तो करो ये थोडे खीझे स्वर में बोले। थोडी देर तो हमने कदम से कदम मिलाने की कोशिश तो करीं। फिर पीछे-पीछे पैर घसीटते हुए चल दिये। एक चक्कर पूरा करते ही धम्म से बैठ गये ।
थोडी देर बाद आस-पास नजर दौडाई तो पाया हमारे जैसे सेहतमन्द लोगों की कमी नहीं है।देख कर थोडी तसल्ली हुई। कुछ ही दूरी पर कुछ बाबा रामदेव जी की चेलियाँ बडे ही अजीबोगरीब व हास्यास्पद तरीके से योगा कर रही थी। देख कर अच्छा लगा। कुछ युवाऒं की टोली भी थी जो आइपाड पर जोर-जोर से "धूम मचा ले धूम" सुनते हुए जागिंग कर रही थी। तब तक पतिदेव आ गये कैसा लगा? आते ही प्रश्न उछाल दिया। "ठीक"। कल भी आना है।
हमें अब यहां वाक पर आते हुए लगभग पंद्रह दिन हो गये है कुछ सहेलियां भी बन गई हैं ।एक राज की बात है हमने भी छाँट-छाँट कर अपने से ज्यादा मोटी महिलाऒं से दोस्ती करीं है जब हम अपनी सहेलियों के साथ पतिदेव के सामने से निकलते हैं तो बडी शान से निकलते हैं देखो हमें कितने फिट हैं ।आज तो हद हो गई जब घर लौटते वक्त उन्होनें भरपूर नजर डाल कर कहा तुम्हारी थोडी चर्बी तो कम हुई यहाँ आने से। हाँ और मन ही मन मुस्कुरा उठे ।जानते हैं क्यों ? हमारी चाल जो कामयाब रही। अगर आपसे मोटे लोग इर्द-र्गिद हो तो उनके समूह में शमिल हो जाइये खुद के पतले होने का अहसास हमेशा आपके पास होगा। साथ ही घर वालों को फक्र से बता सकेंगें कि आप अभी भी फिट हैं । हमारी सलाह पर अमल करके देखिये तानों से तो बचेंगें ही साथ ही तारीफ भी पायेंगें।

Friday, October 19, 2007

सर्वे या मखौल

"यत्र नारीयस्तु पुज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता"ये सूक्ति तो हमारे देश में सदियों से चली आ रही है। नारी सम्मान का महत्व और आवश्यकता सब ही जानते हैं। घर की धूरी यानि महिला।
आधुनिक परिवेश और बदलती मानसिकता कहें या विकृत मानसिकता जिसकी बानगी है -नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ।
भारत सरकार के लोक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने कुछ दिन पहले ही अपने तीसरे ऐसे सर्वे की अंतिम रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के कुछ अंश से ये निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि 54% महिलायें पति के द्वारा पीटे जाने को उचित मानती है । क्या कोई इस बात को सर्हष मानेगा ? ये तो है एक मामूली सा नमूना है।
इस सर्वे में पूछे गये प्रश्न बेहुदगी की हद तक गिरे हुये है -उदाहरण स्वरूप -आपको सबसे पहले संबंध बनाने के लिये किसने मजबूर किया?मौजूदा पति ने ,पूर्व पति ने ? दोस्त ने?पिता ने?सौतेले पिता ने?अन्य रिश्तेदार ने?ससुर ने? शिक्षक ने?वगैरहा वगैरह।
ये तो मात्र दो सवाल है ।कल्पना करी जा सकती है कि शेष 1026 प्रश्न किस तरह के होंगे?कुछ प्रश्नों की भाषा व प्रारुप इतने निम्न कोटि के हैं कि उनका उल्लेख करना भी मुमकिन नहीं है।
यह सर्वे इस लिये किया गया ताकि इसी के आधार पर देश की स्वास्थ्य संबंधी नीतियां व बजट तय किया जायेगा। दूसरी बात की यदि इतने प्रश्न थे तो उनको पूछा भी गया था या वैसे ही खानापूर्ति कर दी गई क्योंकि किसी को भी इस प्रश्नावली का उत्तर देने में कम से कम 17 घंटे लगेगें यदि एक मिनिट भी एक प्रश्न को दिया जाये तो।
राजस्थान में सर्वे करने वाली मुख्य एजेंसी के निदेशक डा. एस. डी .गुप्ता के अनुसार प्रश्नावली "केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पैनल ने तैयार की थी।" स्वास्थ्य विशेषग्य डा उदय पारीक के अनुसार "यह हेल्थ स्टडी का सर्वे है या सेक्सुअल बिहेवियर का"।
सर्वे एजेंसी के अनुसार सर्वे के लिये टीम लीडर और सर्वेयर को मिलाकर राजस्थान में फील्ड में 64 लोग लगाये गये थे। इन लोगो का एक दिन का खर्चा 300 रुपये था। यानि एक दिन का 19200 रुपये। चार महीने तक ये सर्वे चला था। इस तरह से सर्वे का काम करने वालों को दिये गये 23 लाख रुपये। एजेंसी के अनुसार 3892 घरों में सर्वे किया गया । यह खर्चा 11,67,600रुपये होता है।एजेंसी की फीस ,प्रदेश भर के आंकडों को मिलाकर कंपाइल कराने का खर्च अलग और अन्य खर्च अलग है।
सवाल ये है कि हकीकत में क्या हुआ ? सर्वे हुआ भी या इसका अस्तित्व सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहा दूसरे ये कि ऐसे सर्वों का औचित्य ?
दैनिक भास्कर से साभार -

Friday, October 12, 2007

क्या हुआ हमारी संवेदनाओं को ?

कुछ दिन पहले समाचार पत्र में छपे एक समाचार ने सबसे ज्यादा विचलित किया । २२ गायों को मार डाला गया वो भी इतने बर्बर तरीके से कि पढ कर खून खौल उठा।
हमारे यहां -जहां गाय को मां का दर्जा दिया गया है।जिसे पूजा जाता है उसके साथ ये सलूक ? गौ ग्रास निकालने की परम्परा आज भी कई परिवारों में है। पहली रोटी गाय के लिये बनाई जाती है और परिवार के सबसे छोटे सदस्य के हाथ से खिलवाई जाती है ताकि ये परम्परा संस्कार के रुप में पीढी दर पीढी चलती रहें।
जैसलमेर के छत्रेल गांव की ये घटना है -गायों को पहले कीटनाशक पिलाया गया, फिर ट्रेक्टर के आगे दौडा-दौडा कर मार डाला गया। गायों की खालों का अवैध धंधा करने वालों की ये कारस्तानी है अथवा गोचर भूमि पर अतिक्रमण करने वालों की अभी तक ये सुनिश्चित नहीं हो पाया है। किसी भी मूक निरीह जानवर के साथ ऐसा बर्ताव क्या अमानुषिक कृत्य नहीं है ? क्या ये सहनीय है ?आखिर कब तक यूँ ही चलता रहेगा ।